This blog is dedicated to the poetry from my tragedies, experiences, these events have let flow my emotions into the stream of poetry...
poet shire
Saturday, February 22, 2025
पिया मिलन की बात
हिये संजोये तस्वीर आपकी, ऐसा अपना साथ।
ख़िज़ा खिली, हुई सुखी पंखुड़ी गुलाब
आते जाते सामनो -
छेड़ी जो तुमने पिया मिलन की बात।
मेरी रज़ा - मेरी सज़ा
ख़ुदी को कर बुलंद इतना
कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से पूछे —
“बता तेरी रज़ा क्या है?”
और मैं ख़ुदा से मांग लूँ —
"ऐ ख़ुदा, मुझे चंद लम्हे दे,
कि उनकी नज़रों की सरगोशियों में डूब जाऊँ।
सुना है, उनकी नज़रों से एक राह गुज़रती है —
जो सीधा उनके दिल तक जाती है।
वो दिल ही मेरी जन्नत है,
वही मेरी तक़दीर लिख दे।
आज मेरी ख़ुदी को इतना बुलंद कर दे —
कि इश्क़ भी सर झुका दे,
और तक़दीर भी मेरी मोहब्बत से सज़दा करे।
यही मेरी रज़ा है — यही मेरी सज़ा कर दे।
Friday, February 21, 2025
"माया एक आईना"
"माया चेतना का आईना है, जिसमें वह स्वयं को प्रतिबिंबित करती है।"
शुन्य में जब मौन बसा था,
चेतन का कोई नाम न था।
अस्तित्व अकेला जाग रहा था,
स्वयं का भी पहचान न था।
फिर जन्मी एक छवि अनोखी,
अदृश्य सा एक खेल रचा,
चेतना ने स्वयं को देखन को,
माया का दर्पण रच डाला।
तेरे जाने के बाद
ले देख, तेरे जाने के बाद,
मुझमें "मैं" ज़िंदा न रहा,
ले देख, तेरे जाने के बाद,
मुझमें मुझ-सा कुछ न रहा।
यादों की अशर्फ़ियाँ बिखरीं,
हर एक पर तेरा नाम लिखा,
कश्तियाँ-ए-सफ़र बेजान पड़ीं,
बेरंग, बेआब, सुनसान पड़ीं।
शिकारा अब भी लहरों पे है,
मगर उसमें कोई आवाज़ नहीं,
एक चेहरा बैठा दूर कहीं,
पर आँखों में अब वो राज़ नहीं।
तू देख, तेरे जाने के बाद,
रास्ते भी भटके-भटके से हैं,
हवा भी ठहरी लगती है अब,
साया तक मेरा तनहा खड़ा है।
दिन ढलते हैं, पर शाम नहीं,
चाँद भी बुझा-बुझा सा है,
तेरी यादों की धूप ऐसी,
कि साया भी जलता दिखता है।
तू कहती थी, "वक़्त बदलेगा,"
मैं आज भी उस वक़्त में हूँ,
तेरा शिकारा बहता गया,
और मैं किनारे रुका ही रहूँ।
एक तेरे जाने के बाद...
सिर्फ़ एक तेरे जाने के बाद...